यह मुम्बई की करोड़पति स्त्री आशा साहनी का शव है। II Must read: This is the body of a millionaire woman in Mumbai
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करोड़पति स्त्री आशा साहनी का शव है |
यह मुम्बई की करोड़पति स्त्री साहनी का शव है।
एक करोड़पति NRI पुत्र की माँ की लाश है। लगभग 10 माह से 7 करोड़ के फ़्लैट में मरी पड़ी थी। अमेरिका में रहने वाले इंजीनियर ऋतुराज साहनी लंबे अरसे बाद अपने घर मुंबई लौटे, तो घर पर उनका सामना किसी जीवित परिजन की जगह अपनी मां के कंकाल से हुआ। बेटे को नहीं मालूम कि उसकी मां आशा साहनी की मौत कब और किन परिस्थितियों में हुई। आशा साहनी के बुढ़ापे की एकमात्र आशा साहनी 'उनके इकलौते बेटे' ने खुद स्वीकार किया कि उसकी मां से आखिरी बातचीत कोई सवा साल पहले बीते साल अप्रैल में हुई थी।
रविवार सुबह एयरपोर्ट से घर पहुंचने के बाद ऋतुराज आशा साहनीने काफी देर तक दरवाजे पर दस्तक दी। जब कोई जवाब नहीं आया तो उन्होंने दरवाजा खुलवाने के लिए एक चाबी बनाने वाले की मदद ली। भीतर घुसे तो उन्हें अपनी 63 साल की मां आशा साहनी का कंकाल मिला।
आशा साहनी 10वें फ्लोर पर बड़े से फ़्लैट में अकेले रहती थीं। उनके पति की मौत 2013 में हो चुकी थी। पुलिस के मुताबिक 10वीं मंजिल पर स्थित दोनों फ्लैट आशा साहनी परिवार के ही हैं, इसलिए शायद पड़ोसियों को कोई बदबू नहीं आई। हालांकि पुलिस के मुताबिक यह भी हैरानी की बात है कि किसी मेड या फिर पड़ोसी ने उनके दिखाई न देने पर गौर क्यों नहीं किया।
बेटे ने अंतिम बार अप्रैल 2016 में बात होने की जानकारी ऐसे दी, मानों वह अपनी मां से कितना रेगुलर टच में था। जैसा कि बेटे से बातचीत में आशा साहनी ने संकेत भी किया था कि वह इतनी अशक्त हो चुकी थीं कि उनका अकेले चल-फिर पाना और रहना मुश्किल हो गया था। करोड़ों डालर कमाने वाले बेटे की मां और 12 करोड़ के दो फ़्लैटों की मालकिन आशा साहनी को अंतिम यात्रा तो नसीब नहीं ही हुई, इससे भी बड़ी विडंबना यह हुई, जैसा कि प्रत्यक्षदर्शियों का अनुमान है कि संभवत: आशा साहनी की मौत भूख-प्यास के चलते हुई।
भारत के महाराष्ट्र प्रान्त की आर्थिक राजधानी मुंबई के अंधेरी इलाके लोखंडवाला की पाश लोकलिटी 'वेल्स कॉट सोसायटी' में इस अकेली बुजुर्ग महिला की मौत जिन हालात में हुई, उनसे यह साफ है कि कोलंबिया विश्वविद्यालय की रिपोर्ट में छुपी पश्चिमी सभ्यता की त्रासदी हम भारतीयों के दरवाजे पर दस्तक देती लग रही है। इस रिपोर्ट के मुताबिक मौत का इंतजार ही इस सदी की सबसे खौफनाक बीमारी और आधुनिक जीवन शैली की सबसे बड़ी त्रासदी है। अशक्त मां की करुण पुकार सुनकर भी अनसुना कर देने वाला जब अपना इकलौता बेटा ही हो, तब ऐसे समाज में रिश्ते-नातेदारों से क्या अपेक्षा की जाय?
आशा साहनी की मौत ने एक बार फिर चेताया है कि भारत के शहरों में भी सामाजिक ताना-बाना किस कदर बिखर गया है। अब समय नहीं बचा है, अब भारतवर्ष को चेत जाना चाहिए। भारत में भारतीय संस्कृति नहीं बची तो कुछ नहीं बचेगा।
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